दुर्ग/निशांत ताम्रकार/माननीय उच्च न्यायालय ने दुर्ग के तत्कालीन निगमायुक्त सुनील अग्रहरि एवं अन्य दो की याचिका पर सुनवाई करते हुए निचली अदालत के फैसले और पुलिस द्वारा दर्ज की गई एफआईआर पर रोक लगाने का आदेश कल 31 मार्च को दिया है ।
उक्त आशय की जानकारी देते हुए याचिकाकर्ता के अधिवक्ता राजेश केसरवानी एवं श्री प्रकाश तिवारी ने बताया कि दुर्ग के मेहरबान सिंह धारा 156 (3) के अंतर्गत माननीय मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी के न्यायालय में परिवाद पत्र प्रस्तुत कर तत्कालीन निगमायुक्त सुनील अग्रहरि, राजस्व निरीक्षक श्री चंद्रकांत शर्मा, सहायक राजस्व निरीक्षक श्री पवन नायक एवं ठेकेदार श्री अनिल सिंह पर भारतीय दंड विधान की धारा 420 467 468 471 120 बी 34 के तहत अपराध पंजीबद्ध करने की मांग की थी । उक्त परिवाद पर न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी दुर्ग माननीय श्री उमेश कुमार उपाध्याय ने दिनांक 10 अगस्त 2022 को आदेश पारित कर थाना प्रभारी थाना सिटी कोतवाली को निर्देशित किया कि परिवाद में वर्णित तथ्यों एवं प्रस्तुत दस्तावेजों पर संक्षिप्त प्रारंभिक जांच करें और जांच में कोई संज्ञेय अपराध पाया जाए तो संबंधितों के विरुद्ध अपराध पंजीबद्ध कर विधि अनुसार अन्वेषण कार्यवाही करें । उपरोक्त
आदेश पर थाना पद्नाभपुर चौकी द्वारा बिना प्रारंभिक जांच एवं अन्वेषण के श्री अग्रहरि सहित अन्य 3 पर दिनांक 20 मार्च 23 को भारतीय दंड विधान की धारा 420 467 468 471 120 बी 34 के तहत अपराध पंजीबद्ध कर माननीय न्यायालय को इसकी सूचना दी ।
उल्लेखनीय है कि यह मामला वर्ष 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में मतदाता जागरूकता कार्यक्रम के लिए नगर निगम द्वारा विभिन्न स्थानों पर लगाए गए फ्लैक्स कार्य के भुगतान का है। तत्कालीन निगम आयुक्त सुनील अग्रहरि की पदस्थापना 18 फरवरी 2019 को और 10 मार्च 2019 को आचार संहिता लागू हुई। दुर्ग में 23 अप्रैल को होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए जिला निर्वाचन अधिकारी द्वारा 22 मार्च को निगमायुक्त को ज्ञापन प्रेषित कर मतदाता जागरूकता कार्यक्रम के संबंध शहर के विभिन्न स्थानों पर विज्ञापन होर्डिंग पर फ्लेक्स लगाने तथा निगम के वाहनों से प्रचार प्रसार कर मतदाता जागरूकता कार्य करने के निर्देश दिए गए । जिसके परिपालन में नगर निगम द्वारा भंडार क्रय नियम में विहित प्रावधानों के अनुसार एक लाख से कम राशि के कार्य के लिए प्रतिष्ठित आपूर्तिकर्ताओं से कोटेशन प्राप्त कर उपरोक्त कार्य कराया गया और संबंधित फर्म को जीएसटी सहित ₹ 8 लाख 65 हजार 476 का भुगतान किया गया । उपरोक्त कार्यो का पालन प्रतिवेदन फोटोग्राफ सहित जिला निर्वाचन अधिकारी को नगर निगम द्वारा प्रेषित भी किया गया है ।
अधिवक्ता श्री केसरवानी ने बताया कि कतिपय शिकायत के आधार पर तत्कालीन निगमायुक्त इंद्रजीत बर्मन ने प्रकरण पर जांच प्रारंभ की और तत्कालीन निगमायुक्त सुनील अग्रहरि को बयान के लिए नोटिस जारी किया, जबकि एक अधिकारी द्वारा अपने समकक्ष अधिकारी के विरुद्ध जांच नहीं की जा सकती । श्री अग्रहरि ने उक्त नोटिस के आधार पर दिनांक 31 दिसंबर 2019 को आयुक्त को पत्र प्रेषित कर सक्षम प्राधिकारी के विभागीय जांच आदेश एवं शिकायत की छाया प्रति की मांग की किंतु उन्हें उपलब्ध नहीं कराया गया । तत्कालीन आयुक्त ने शिकायत पर पूरी की पूरी राशि को गबन माना जबकि किए कार्य का प्रतिवेदन, फोटोग्राफ्स एवं समाचार पत्र की कतरन जिला निर्वाचन अधिकारी को प्रेषित किया गया था। आदर्श आचार संहिता के दौरान नई निविदाएं प्रतिबंधित होती है और चुनाव आयोग के निर्देश पर बाजार मूल्य के आधार पर निर्वाचन कार्य कराने की छूट रहती है लेकिन तत्कालीन आयुक्त ने विभागीय प्रक्रिया को कूटरचना बताया। उपयोग किया गया फ्लेक्स प्रतिबंधित था अथवा नहीं यह भी पंचनामा में नहीं पाया गया ।
याचिकाकर्ता के अधिवक्ता श्री प्रकाश तिवारी ने बताया कि मेहरबान सिंह के परिवाद पर माननीय न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी दुर्ग श्री उमेश कुमार उपाध्याय ने दिनांक 10 मार्च 2023 को थाना प्रभारी पद्नाभपुर को ज्ञापन प्रेषित कर दिनांक 10 अगस्त 2022 के आदेश के अनुपालन में की गई कार्यवाही से 20 मार्च 23 तक सूचित करने और कार्रवाई से न्यायालय को अवगत कराने के निर्देश दिए l उक्त निर्देश के परिपालन में थाना प्रभारी द्वारा परिवाद में वर्णित तथ्यों एवं प्रस्तुत दस्तावेजों पर बिना प्रारंभिक जांच के सीधे एफआईआर दर्ज किया गया। जिस पर याचिकाकर्ता तत्कालीन आयुक्त श्री अग्रहरि एवं अन्य 2 ने माननीय उच्च न्यायालय की शरण ली ।
याचिकाकर्ता के वकीलद्वय श्री राजेश केसरवानी एवं श्री प्रकाश तिवारी ने माननीय उच्च न्यायालय में दलील दी कि माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने प्रियंका श्रीवास्तव बनाम वी. उत्तर प्रदेश राज्य (2015) 6 एससीसी 287 में रिपोर्ट किया गया। प्रतिवादी मेहरबान सिंह ने सीआरपीसी की धारा 154 (1) के तहत आवश्यक कार्रवाई नहीं की है और इसलिए विद्वान मजिस्ट्रेट को आवेदन की अनुमति नहीं देनी चाहिए थी। उन्होंने प्रशांत वशिष्ठ बनाम के मामले में इस न्यायालय की खंडपीठ के फैसले पर भी भरोसा किया। छत्तीसगढ़ राज्य ने 2023 के मुकदमे (छ.) 99 में रिपोर्ट दी। उन्होंने आगे तर्क दिया कि प्रतिवादी ने एफआईआर दर्ज करने से पहले प्रारंभिक जांच करने के लिए विद्वान मजिस्ट्रेट द्वारा जारी निर्देश का भी पालन नहीं किया है। प्राथमिकी में यह उल्लेख नहीं है कि प्रारंभिक जांच के परिणाम के आधार पर प्राथमिकी दर्ज की जा रही है।
राज्य शासन के अधिवक्ता श्री क़ासिफ शकील ने विरोध किया कि प्राथमिकी की प्रति प्रमाणित प्रति नहीं है और केवल वेब प्रति है, उन्हें याचिका का जवाब दाखिल करने के लिए कम समय दिया जा रहा है। श्री शकील ने पैरवी में कहा कि वह याचिकाकर्ता के वकील के प्रस्तुतीकरण का विस्तृत उत्तर दाखिल करेगा कि क्या विद्वान मजिस्ट्रेट द्वारा जारी किए गए निर्देश के अनुसार कोई प्रारंभिक जांच की गई थी और क्या याचिकाकर्ता ने मामले के तथ्यों और परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए संबंधित स्टेशन हाउस अधिकारी के समक्ष कोई शिकायत/रिपोर्ट दर्ज की है।
माननीय उच्च न्यायालय के न्यायाधीश श्री पार्थ प्रीतम साहू ने याचिकाकर्ता के वकील की प्रस्तुति और विद्वान मजिस्ट्रेट श्री उमेश उपाध्याय द्वारा पारित आदेश दिनांक 10.08.2022 पर विशुद्ध रूप से एक अंतरिम उपाय के रूप में यह निर्देश दिया कि एफआईआर संख्या 35/2023 के अनुसार आगे की कार्यवाही दर्ज की जाए। अगली सुनवाई तक थाना पद्मनाभपुर, दुर्ग, जिला-दुर्ग पर रोक रहेगी. इस मामले को 1 मई से शुरू होने वाले सप्ताह में सूचीबद्ध करने के निर्देश भी माननीय न्यायाधीश द्वारा दिए गए ।